|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
---------------------------------------------------------------------------------------
" *चन्दन-अन्योक्ति* " ( २८५ )
---------------------------------------------------------------------------------------
*श्लोक*---
" यद्यपि चन्दनविटपी विधिना फलकुसुमविवर्जितो विहितः ।
निजवपुषैव परेषां तथापि संतापमहरति ।। "
( भर्तृहरिसुभाषितसंग्रह )
---------------------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*---
ब्रह्मदेव ने चन्दनवृक्ष को पुष्प और फल दिये नही तो क्या हुआ ?
उसने खुद के सामर्थ्य से बाकी लोगों का संताप और दाह दूर करने नैपुण्य संपादन किया है ।
---------------------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*---
चन्दन के आड से सुभाषितकार ने अष्टावक्र जैसे लोगों के बारे में हमे बताया है । बहुत से लोगों को ब्रह्मा ने सौन्दर्य तो नही दिया है पर उन्होने अपने गुणों से सभी का दिल जीत लिया है ।
उनकी मधुर वाणी सामने वाले का दाह शांत करने का सामर्थ्य रखती है ।
-------------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
------------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
------------------------------------
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
No comments:
Post a Comment