Monday, December 3, 2018

Sanskrit subhashitam

|| ॐ ||   ( पुनश्च हरिॐ )
              " सुभाषितरसास्वादः "
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            " वाग्ववर्णनम् " (२६०)
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श्लोक-----
" गानाब्धेस्तु  परं  पारं  नोपेयाय  सरस्वती ।
  अतो  निमज्जनभयात्तुम्बीं  वहति  वक्षसि " ।।
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अर्थ---
   गान विद्या  एक  अपारसागर  है ।  वाणी  और  गानविद्या  की  देवी  सरस्वती- उसको  भी  यह  गानसागर  तैर  कर  जाना  अशक्य  लगा । इसलिए  इस  सागर  में  डूबने  के  भय  से  ही  उसने    कुमडे ( भोपळा )  की  वीणा  हाथ  में  ग्रहण  करके  रखी  है ।  
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गूढार्थ--
सुभाषितकार  की  उत्तुंग  प्रतिभा  यहाँ  देखने  को  मिलती  है ।  गानदेवी  सरस्वती  भी  गाने  के  सागर  का  किनारा  नही  जानती  इतना  वह  अपार  है  और  इसी  भय से  उसने  कुमडेधारी  वीणा  अपने  हाथ  में  धारण  की  है  कि  कहीं  वह  इस  गानसागर  में  खुद  ही  न  डूब  जाये ।
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / नागपुर  महाराष्ट्र 
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