गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
भावार्थ-गुणी मनुष्य के सम्बन्ध से गुण गुण ही रहते हैं अर्थात उनका आदर होता है । पर वे ही गुण निर्गुण मनुष्य के सम्बन्ध से दोष हो जाते हैं । नदियों का जल स्वभाव से ही स्वादिष्ट होता है, परन्तु वही जल जब समुद्र में जाकर गिरता है तो वह खारा हो जाता है।
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