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⛳🌞 विदग्धा वाक् ⛳
*कपाले यद्वदापः स्युश्चितायामनलो यथा ।*
*आश्रयस्थानदोषेण वृत्तहीने तथा श्रुतम्॥*
--सुभाषितसुधानिधिः पु. २६
कपाले यद्वद् आपः स्युः चितायाम् अनलः यथा । आश्रय-स्थान-दोषेण वृत्तहीने तथा श्रुतम्॥
यद्वद् कपाले आपः स्युः, यथा (च) चितायाम् अनलः तथा आश्रय-स्थान-दोषेण वृत्तहीने श्रुतं (भवति)॥
जिस प्रकार कपाल में पानी, और चिता का अग्नि (स्वयं पवित्र होने पर भी इनके संयोग से अपवित्र होते हैं), उसी प्रकार आश्रय के दोष से चरित्रहीन व्यक्ति में ज्ञान भी (अपवित्र होता है)।
Just as the water filled into the human skull and fire in a funeral pyre lose their sanctity, the abundent knowledge of a characterless man is unworthy.
--Subhashitha Samputa, Bharatiya Vidya Bhavan
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