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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिकाः* " ( २४५ )
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*श्लोक*----
" एका नारी काष्ठवस्त्रावृता सा
कृष्णा , तीक्ष्णा , लेखने सिद्धहस्ता ।
मूर्धाभङ्गात् लेखने वाऽसमर्था
ग्रीवाच्छेदात् चाल्यते नैकवारम् ।।
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*अर्थ*----
एक नारी है जो काष्ठ से आवृत्त है ।
काले रंग की , तीक्ष्ण और सिद्धहाथ में होने पर लिखने में समर्थ है। सर कटने पर लिखने में असमर्थ हो जाती है किन्तु उसकी ग्रीवा अनेकवार छेदी जाती है फिर भी वह चलती है ।
तो वह कौन है ?
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*गूढ़ार्थ*----
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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