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" सुभाषितरसास्वादः "
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" लक्ष्मीवन्तस्यमहात्म्य " ( २५१ )
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श्लोक---
" गंङ्गां च धारयति मूर्ध्नि सदा कपाली
सा तस्य चुम्बति मुखं न कदाचिददेव ।
रत्नाकरं प्रति चुचुम्ब सहस्त्रवकै-
र्गङ्गादयो युवतयः साधनानुकूलाः ।। "
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अर्थ---
गङ्गा को शंकरने अपने मस्तक पर चढा कर रखा है फिर भी उसने कभी उसके मुख का चुम्बन नही किया । किन्तु -- दूर जाकर उस रत्नाकर का सहस्त्र मुखों से चुम्बन लेती है । आखिर गङ्गा आदि युवती श्रीमन्त लोगों के ही अनुकूल होती है ।
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गूढ़ार्थ----
सुभाषितकार ने कितनी खूबी से हमे लक्ष्मीवन्त लोग और दरिद्री लोग इनके बारे में शंकर और समुद्र के उदाहरण से समझाया है ।
सचमुच गङ्गा विराजती तो शिव के मस्तक पर है किन्तु उसके साथ कभी रमती नही किन्तु सहस्त्र योजन दूर समुद्र में जाकर उसे चुम्बन करती है उसमें रमकर समा जाती है क्यों कि वह रत्नाकर है इतने सारे रत्नों से वह मोहित हो जाती है । मतलब गङ्गा आदि युवतियां लक्ष्मीवान लोगों के पिछे ही जाती है ।
शायद आजकल भी युवतियां धन देखकर ही विवाह करती है किन्तु इस श्लोक से पता चलता है यह परम्परा काफी पुरानी है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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