|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *चित्रश्लोक* " ( २३० )
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*श्लोक*----
" उष्ट्राणां लग्नवेलायां गर्दभाः स्तुतिपाठकाः ।
परस्परं प्रशंसन्ति " अहो रूपं ! अहो ध्वनिः! " ।।
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*अर्थ*----
उट का लग्नप्रसंग है और गधा स्तुतिपाठक है । उट को वह कह रहा है -" अहाहा ! क्या आपका रूप है ! और फिर परस्पर प्रशंसा करते हुए उट गधे को कहता है -" अहाहा ! आपका ध्वनि कितना मधुर !
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*गूढ़ार्थ*---
इसको एक ही पंक्ति में बता सकते की आजकल के राजकारणी लोगों का यथार्थ वर्णन सुभाषितकार ने किया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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