Monday, October 29, 2018

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २१८ )
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    *श्लोक*----
   " बहुसुप्तः बहुभुक्तः मुखरश्च  निन्दकः 
    गर्विष्ठः  गतं  शोचतः निजदुःख  निवेदकः ।
       अकारण  विरोधकश्च  गतवैभवे  निमग्नः 
      जाड्यः  आरामप्रियः  दशैते  मूर्ख  लक्षणाः ।। "
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  *अर्थ*---
  बहुत  सोनेवाला , बहुत  खानेवाला , बहुत  बोलनेवाला , दुसरे  की निन्दा  करनेवाला , गर्विष्ठ, गये  हुए  का  शोक  करनेवाला , अपना  दुःख  जाहीर  करनेवाला ,  अकारण  विरोध  करनेवाला , गतवैभव  में  ही  रममाण  होनेवाला , मतिमंद ,  आलसी  यह  दस  मूर्खों  के  लक्षण  है ।
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  *गूढ़ार्थ*-----
  जनरीती  को  छोडकर  बर्ताव  करनेवाला हमेशा  ही  लोगों  की  टीका  का  लक्ष्य  बन  जाता  है ।  ऐसे  लोग  हमेशा  ही  खुद  के  बर्ताव  से  खुद  का  और  दुसरे  का  नुकसान  ही  करते  है ।  मनुष्य  ने  यह  दोष  दूर  करने  का  हमेशा  ही  प्रयत्न  करना  चाहिए  ऐसा  ही  सुभाषितकार  यहाँ  पर  सूचित  कर  रहा  है । श्री. समर्थ  रामदास  स्वामीजी  ने  तो  १५० के  उपर  मूर्खों  के  लक्षण  बताये  है ।  और  उन  लक्षणों  का  त्याग  करके  खुद  का  व्यक्तित्व  सुधारने  के  लिये  कहा  है ।
  इस  सुभाषित  में  जो मूर्खों  की  लक्षणे  दी  है  वह  सर्वपरिचित  ही  है ।
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  / नागपुर  महाराष्ट्र 
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