|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *व्यवहारनीति* " ( २१९ )
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*श्लोक*-----
" एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः ।
चतुर्भिर्गमनं क्षेत्रं पंचिभिर्बहुर्भिः रणम् ।। "
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*अर्थ*----
तप अकेले ने ही करना चाहिये, अभ्यास दो व्यक्तियों ने करना चाहिए , गाने के लिये तीन लोग चाहिए । प्रवास करने के लिये चार व्यक्ति का होना जरूरी है तो खेती करने के लिये पांच व्यक्तियों की आवश्यकता होती है तो युद्ध के लिये बहुत सारे लोगों ने जाना चाहिए ।
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*गूढ़ार्थ*-----
किस कार्य के लिये कितने लोगों की आवश्यकता होती है यह सुभाषितकार ने यहाँ पर लिखा है ।
जप --तप , ध्यान अकेले ने ही करना चाहिये तो ही मन एकाग्र होता है , वहाँ पर किसी दूसरें के साहय्यता की आवश्यकता ही नही होती ।
अभ्यास दो लोगों ने मिलकर किया तो अनुकूल रहता है , एक को नही समझा तो दूसरा बता सकता है , और एक दूसरे को पूछ कर अभ्यास ( उजळणी ) हो जाता है । गायन के लिये तीन लोगों की आवश्यकता होती है , एक गानेवाला और उसकी साथ करने के लिये दो लोग क्यों कि उससे सूर , लय से समा बंध जाता है । प्रवास के लिये चार लोग चाहिए ऐसा सुभाषितकार बता रहा है , यह तब की बात हो रही है जब कोई प्रवासी साधन उपलब्ध नही थे । इसलिये भोजन बनाना , पानी लाना , सुरक्षितता आदि सब के लिये कुछ लोगों की आवश्यकता होती थी तो चार लोग साथ चल दिये तो अच्छा होता था । खेती के लिये पांच लोगों की आवश्यकता बतायी गयी है , खेती के साथ जानवरों की भी देखभाल करनी पडती है , साथ में कटाई, बीज बोना और भी बहुत काम होते है, उसके लिये कम से कम पांच लोग तो चाहिए ही न । रण में जाते वक्त तो बहुत लोग चाहिये ही चाहिए क्यों कि वहाँ पर तो सभी कार्यों के लिये लोगों की आवश्यकता होती है । वहाँ पर अनगिनित लोग रहे तो ही अच्छा ।
शत्रु से हमारे सैनिक ज्यादा होगे तो ही हम युद्ध जीत सकेंगे ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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