|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *कर्तृत्व* " ( २११ )
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*श्लोक*----
" सुशीलो मातृपुण्येन पितृपुण्येन पण्डितः ।
दातृत्व वंशपुण्येन आत्मपुण्येन सभाग्यतः ।। "
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*अर्थ*-----
मां के पुण्य से सुशीलता प्राप्त होती है । पिता के पुण्य से विद्वत्ता।
कुल के पुण्य से दातृत्व प्राप्त होता है और खुद के कर्तव्य से सद्भाग्य प्राप्त होता है ।
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*गूढ़ार्थ*----
मां कितनी सुशील है इस पर ही अपत्य को सुशीलता मिलती है।
पिता की विद्वत्ता ही अपत्य में आती है और घराने का ही दातृत्व अपत्य प्राप्त करता है लेकीन यह सब प्राप्त होने के बाद भी खुद का कर्तृत्व अत्यावश्यक है और उसके लिये अच्छे कर्मों की जरूरत है । कर्म अच्छे तो पुण्य अच्छा और तो ही सद्भाग्य प्राप्ती संभव होगी । मतलब घराने का सबकुछ मिलने के बाद भी खुद की पहचान बनाने के लिये कर्तृत्व आवश्यक है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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