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*अन्नमशितं त्रेधा विधीयते तस्य यः स्थविष्टो धातुस्तत्पुरीषं भवति यो
मध्यमस्तन्मासं योsणिष्ठस्तन्मनः॥१॥*
*अन्नमयं हि सोम्य मन:।*
-------------------------छान्दोग्य उपनिषद्।
*जो अन्न खाया जाता है वह तीन भागों में विभक्त हो जाता है। स्थूल अंश
मल, मध्यम अंश रस, रक्त, माँस आदि और सूक्ष्म अंश मन बन जाता है.। मन
अन्नमय होता है।*
*इसलिए अन्न की शुद्धता से मन की शुद्धता होती है।*
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