|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *वाल्मीकिमाहात्म्यः* " ( १७१ )
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*श्लोक*-----
" सदूषणाऽपि निर्दोषा सखराऽपि सुकोमला ।
नमस्तमै कृता येन रम्या रामायणी कथा " ।।
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*अर्थ*----
जिसने सदूषणा होकर भी कथा को निर्दोष किया और सखरा होने के बाद भी रामायणकथा को कोमल और रम्य किया ऐसे वाल्मीकि कवी को नमस्कार ।
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*गूढ़ार्थ*-----
दूषण और खर यह दो रामायण यह दो राक्षस । इन दोनों पर से सदूषणा और सखरा इन दो शब्दों पर द्वयर्थी कोटि की गयी है ।
सदूषणा = दोषपूर्पंण ,पंछी, दूषण जिसमें है ऐसी कृति ।
सखरा= खर = रूक्ष, पंछी= राक्षस जींत है ऐसी ।
जिसने दूषण जिसमें है ऐसी कथा और जो रूक्ष भी है ऐसी कथा को कोमल , रसाळ और रम्य बनाया ऐसे वाल्मीकि कवी को नमस्कार।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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