Friday, July 6, 2018

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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  " *शब्दशास्त्र* " ( १४४ )
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*श्लोक*---
   " श्लोकस्तु  श्लोकतां  याति  यत्र  तिष्ठन्ति  साधवः ।
     " ल " कारो  लुप्यते  तत्र  यत्र  तिष्ठन्त्यसाधवः " ।।
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*अर्थ*---
  काव्य  का  और  श्लोकों आस्वाद  लेने  वाले  अगर  सुजन  है  तो  श्लोकों  का  श्लोकत्व  उसमें  रहता  है ।  और  काव्यवाचक  यदि दुर्जन  हो  तो  उसमें  का  " ल " कार  नष्ट  हो  जाता  है ।  
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*गूढ़ार्थ* ----
  सुभाषितकार  ने  यहाँ  पर  केवल  " ल "  के  होने  से  और  ना  होने  से  कितना  बडा  फर्क  होता  है  यह  बताया  है ।
" ल " अगर  श्लोक  में  से  निकाल  दिया  केवल  " शोक "  ही  बचेगा ।
  अगर  काव्यवाचक  दुर्जन  रहेगा  तो  वह  काव्य  के  श्लोक  में  से  " ल "
कार  निकाल  देगा  तो  केवल  शोक  ही  बचेगा ।  मतलब  कहाँ  से  इस  दुर्जन  को  काव्य  दिखाया  यह  शोक  कवी  को  करना  पडेगा ।
दुर्जन  व्यक्ति  अच्छे  से  काव्य  की  परीक्षा  कर  नही  सकेगा ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  / नागपुर  महाराष्ट्र 
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