|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *शब्दशास्त्र* " ( १४४ )
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*श्लोक*---
" श्लोकस्तु श्लोकतां याति यत्र तिष्ठन्ति साधवः ।
" ल " कारो लुप्यते तत्र यत्र तिष्ठन्त्यसाधवः " ।।
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*अर्थ*---
काव्य का और श्लोकों आस्वाद लेने वाले अगर सुजन है तो श्लोकों का श्लोकत्व उसमें रहता है । और काव्यवाचक यदि दुर्जन हो तो उसमें का " ल " कार नष्ट हो जाता है ।
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*गूढ़ार्थ* ----
सुभाषितकार ने यहाँ पर केवल " ल " के होने से और ना होने से कितना बडा फर्क होता है यह बताया है ।
" ल " अगर श्लोक में से निकाल दिया केवल " शोक " ही बचेगा ।
अगर काव्यवाचक दुर्जन रहेगा तो वह काव्य के श्लोक में से " ल "
कार निकाल देगा तो केवल शोक ही बचेगा । मतलब कहाँ से इस दुर्जन को काव्य दिखाया यह शोक कवी को करना पडेगा ।
दुर्जन व्यक्ति अच्छे से काव्य की परीक्षा कर नही सकेगा ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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