|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *वाग्वर्णनम्* " ( ८२ )
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*श्लोक*-----
" लक्ष्मीर्वसति जिव्हाग्रे , जिव्हाग्रे मित्रबान्धवाः ।
जिव्हाग्रे बन्धनं प्राप्यम् , जिव्हाग्रे मरणं ध्रुवम् " ।।
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*अर्थ*---
जिव्हा के नोंक पर लक्ष्मी वास करती है । जिव्हा के नोंक पर मित्र और भाऊबंदो के साथ वाले रिश्ते रहते है । और जिव्हा पर बंधन आवश्यक है । नही तो प्राणों पर संकट आ सकता है ।
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*गूढ़ार्थ*----
जिव्हा के मुख्य दो उपयोग होते है । एक तो रसास्वाद और दुसरा बोलना । पहिला देह से संबंधित तो दुसरा इतर लोगों से संबंधित ।
दुसरा ज्यादा महत्वपूर्ण है क्यों कि शब्द शस्त्र है उसका संभलकर उपयोग करना चाहिए । मिठा बोलने का महत्व सभी जानते ही है ।
उद्दाम वाणी को हमारे ऋषियों ने "राक्षसी "वाणी कहा है ।
" जीवन में जो यश प्राप्त होता है उसका सारा श्रेय ही जिव्हा को है । जिव्हा पर विजय प्राप्त नही किया तो प्राणसंकट आ सकता है।
पैसा कमाना , रिश्ते संभालना इन सब के लिये जिव्हा अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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