Saturday, March 12, 2022

Brahmachari - Sanskrit subhashitam

*७०६ . ।। ब्रह्मचारी ।।*

*कामचारी तु कामेन* 
          *य इन्द्रियसुखे रतः ।*
*ब्रह्मचारी सदैवैष* 
          *य इन्द्रियजये रतः ॥* 
विषयांच्या लालसेने जो इंद्रिय सुखांत गढून जातो तो कामचारी होय आणि इंद्रियांवर ताबा ठेऊन जो सदैव इंद्रियांचे दमन करण्यांत आनंद मानतो तो ब्रह्मचारी होय .

विषयों की लालसा से जो इंद्रियों के सुख में रममाण रहता हैं , वह कामचारी होता हैं और इंद्रियों को काबू में रखकर उन का सदैव दमन करनें में जिसे आनंद की अनुभूति होती हैं , वह ब्रह्मचारी होता हैं ।

The one who remains engrossed in happiness with the hope of getting sensuous pleasure is the lustful and one who finds happiness in constant suppression of the senses is the celibate ( _brahmachari_) .

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