|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २३४ )
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*श्लोक*----
" बहुसुप्तः बहुभुक्तः मुखरश्च निन्दकः
गर्विष्ठः गतं शोचतः निजदुःख निवेदकः ।
अकारण विरोधकश्च गतवैभवे निमग्नः
जाड्यः आरामप्रियः दशैते मूर्ख लक्षणाः ।। "
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*अर्थ*---
बहुत सोनेवाला , बहुत खानेवाला , बहुत बोलनेवाला , दुसरे की निन्दा करनेवाला , गर्विष्ठ, गये हुए का शोक करनेवाला , अपना दुःख जाहीर करनेवाला , अकारण विरोध करनेवाला , गतवैभव में ही रममाण होनेवाला , मतिमंद , आलसी यह दस मूर्खों के लक्षण है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
जनरीती को छोडकर बर्ताव करनेवाला हमेशा ही लोगों की टीका का लक्ष्य बन जाता है । ऐसे लोग हमेशा ही खुद के बर्ताव से खुद का और दुसरे का नुकसान ही करते है । मनुष्य ने यह दोष दूर करने का हमेशा ही प्रयत्न करना चाहिए ऐसा ही सुभाषितकार यहाँ पर सूचित कर रहा है । श्री. समर्थ रामदास स्वामीजी ने तो १५० के उपर मूर्खों के लक्षण बताये है । और उन लक्षणों का त्याग करके खुद का व्यक्तित्व सुधारने के लिये कहा है ।
इस सुभाषित में जो मूर्खों की लक्षणे दी है वह सर्वपरिचित ही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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