|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *समस्यापूर्ति* " ( १५३ )
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*श्लोक*---
" आषाढी कार्तिकी माघी वचा शुण्ठीः हरीतकी ।
गयायां पिण्डदानेन पुण्या श्लेष्महरानृणी " ।।
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*अर्थ*----
आषाढी , कार्तिकी , माघी , वेखण्ड , शूण्ठ , हिरडा , गया में किया गया पिण्डदान यह सब चीजें पुण्यकारक होकर कफ का हरण करनेवाले और ऋणमुक्त करनेवाले भी है । ( यह कैसे ? )
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*गूढ़ार्थ*-----
आषाढी , कार्तिकी , माघी ? = पुण्यप्रद। ( वचा ) वेखण्ड ( हारीतकी ) हिरडा , शुण्ठी = ( श्लेष्म ) कफनाशक । गया में किया गया पिण्डदान = अनृण ( ऋणमुक्त करने वाला )
अब समस्या हल हो गयी ? चौथा चरण पहले तीन प्रश्नों का उत्तर है।
आषाढी , कार्तिकी और माघी यह तिथियाँ चौथे चरण का पहला अक्षर = पुण्या । वेखण्ड , हिरडा , शूण्ठी = श्लेष्महारिणी। गया में किया गया पिण्डदान कैसा होता है = अनृण ।
है न मजेदार ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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