Friday, November 26, 2021

Lakshmi & paravati conversation - Sanskrit

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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   " *वाकोवाक्यम्* " ( पातुः वः ) ( १४५ ) 
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 *श्लोक*----
   " भिक्षुः क्वास्ति बलेर्मखे
    पशुपतिः किं नास्त्यसौ गोकुले
   मुग्धे पन्नगभूषणः 
   सखि सदा शेते च तस्योपरि ।
   आर्ये मुञ्च विषादमाशु
   कमले नाहं प्रकृत्या चला 
  चेत्थं वै गिरिजासमुद्रसुतयोः
    सम्भाषणं पातुः वः " ।।
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  *अर्थ*----
  यह लक्ष्मी और पार्वती का संवाद है । यहाँ लक्ष्मी पार्वती को शिव के उपस्थिति विषयी प्रश्न पूछ रही है । लक्ष्मी जो प्रश्न पूछ रही है वह सब शिव का अधनत्वं सूचित कर रहे है । लक्ष्मी का यह भाव जानकर चतुर पार्वती उसके प्रश्नों द्वारा जो विशेषण शिव के लिये लगाये गये है वह सब नारायण को वापस लगा रही है । 
लक्ष्मी-- भिक्षु ( शिव ) कहाँ है ?
पार्वती--- बलि के यहाँ गया लगता है । ( वामनरूप से गया है )
लक्ष्मी ---- पशुपति कहाँ है ?
पार्वती--- क्या गोकुल में नही है ?
लक्ष्मी ---- हे मुग्धे ! पन्नगभूषण कहाँ है ?
पार्वती--- सखि ! वह तो हमेशा उसपर सोते है ।
लक्ष्मी ---- आर्ये ! विषाद को छोड दो ।
पार्वती---- कमले ! मैं तेरे जैसी प्रकृती से चञ्चल नही हूँ ।
उन दोनों का इसतरह का संवाद आपकी रक्षा करे ।
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*गूढ़ार्थ*----
   भिक्षु = शिव हमेशा भिक्षाटन करता है। और विष्णु ने भी वामन के रूप में बलिराजा से भिक्षा मांगी थी ।
पशुपति = शिव का एक विशेषण । और कृष्णावतार में गोकुल में भगवान विष्णु भी पशु को चरवाने ले जाते थे इसलिए वह भी पशुपति ।    
    पन्नगभूषण = शिव के गले में नाग होने से वह पन्नगभूषण कहलाता है । और विष्णु सर्पशय्या पर सोने से पन्नगभूषण कहलाता है ।
   विषादं = दुःख / विष को पिने के कारण ।
शिव निर्धन होने के कारण उसके साथ दुःख ही है ।
लक्ष्मी कह रही है ऐसे शिव को तुम छोड दो और इसपर पार्वती कह रही है हे कमले ! मैं आपके जैसी चञ्चल नही हूँ ।
इस तरह का उन दोनों का संवाद आपकी हमेशा रक्षा करे।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र 
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