६९६ . ।। विमोक्षणम् ।।
शक्नोतीहैव यः सोढुं
प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं
स युक्तः स सुखी नरः ॥
शक्नोतीहैव यः सोढुं
प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं
स युक्तः स सुखी नरः ॥
जो साधक हे मानवी शरीर टाकून देण्यापूर्वीच कामक्रोधांचा तडाखा सहन करण्यास समर्थ होतो , तोच योगी ठरतो . तोच मनुष्य सुखी होतो .
जो साधक इस मनुष्य शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता हैं , वही पुरुष योगी हैं और वही सुखी हैं ।
He who , before he leaves his body , learns to surmount the promptings of desire and anger is a saint and is happy .
No comments:
Post a Comment