Wednesday, August 4, 2021

These spread fast -Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
       " *सुभाषितरसास्वादः* "
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       " *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २४५ )
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*श्लोक*---
जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि ।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः "।।
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*अर्थ*----
पानी में तेल , दुष्ट के पास गुप्त गोष्ट , योग्य जगह दान , प्रज्ञावंत के पास बोला हुआ शास्त्र यह वस्तुशक्ति के कारण इनका स्वतः ही विस्तार हो जाता है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
तेल जैसा ही पानी में गिरता है वैसा ही वह फैलना शुरू हो जाता है । किन्तु अगर घी पानी में गिर जाता है तो सिधा बर्तन में नीचे जाकर बैठ जाता है । किसी दुष्ट को महत्वपूर्ण बात समझ जाती है तो वह बात जरूर फैला ही देता है । योग्य जगह पर दान दिया तो वह सबको पता चल ही जाता है ।और प्रज्ञावान व्यक्ति के साथ शास्त्र की बाते की तो वह ज्ञान अनेक लोगों तक पोहच जाता है ।
बिना श्रम की ही यह बाते हो जाती है ।
इसलिए सुभाषितकार हमे नसीहत दे रहे है कि---दान हमेशा सत्पात्री देना चाहिए । चर्चा हमेशा प्रज्ञावंत के साथ करनी चाहिए और गुपित कभी भी दुष्ट व्यक्ति को बताना नही चाहिए ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र 
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