७०७ . ।। क्षमा ।।
क्षमा प्रशस्यते लोके
न तु पापोऽर्हति क्षमाम् ।
क्षमावन्तं हि पापात्मा
जितोऽयमिति मन्यते।।
क्षमा प्रशस्यते लोके
न तु पापोऽर्हति क्षमाम् ।
क्षमावन्तं हि पापात्मा
जितोऽयमिति मन्यते।।
जगात क्षमा करणे ही गोष्ट चांगली समजली जाते . पण पापी मनुष्य मात्र क्षमा करण्यास पात्र नसतो . कारण त्याला क्षमा केल्यास तो क्षमा करणाऱ्यालाच आपण जिंकले असे मानायला लागतो .
संसार में क्षमा को अच्छा माना जाता है , पर पापी व्यक्ति कभी क्षमा के योग्य नही होता , क्यों कि पापों में ही लगे हुए मन वाला व्यक्ति क्षमा करने वाले को अपने द्वारा जीता हुआ मान लेता हैं ।
Forgiveness is assumed to be a good quality in the world . But the wicked is not liable for forgiving . Because if he is forgived , he starts thinking that I have won the forgiver .
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