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|| सुभाषित रसास्वादः || [ ३३९ ]
'' शिवस्तुति ''
'' प्रणयकुपितां दृष्ट्वा देवी, ससंभ्रमविस्मितस्त्रिभुवनगुरुर्मीत्या सद्यः प्रणामपरोऽभवत् |
नमिताशिरसो गङ्गालोके तया च चरणाहताववतु, भवतरुयक्षस्यैतद्विलक्षमवस्थितम् ||''
अर्थ—प्रेम के कारण देवी पार्वती कुपित है यह देखकर अचानक आश्चर्यचकित तीनों लोगों के गुरु महादेव भयभीत होकर तुरंत पार्वती को प्रणाम करने लगे परन्तु महादेव के मस्तक झुकते ही पार्वती की दृष्टी गंगा पर पड़ी और और पार्वती ने उसे लात मारी , पार्वती के चरण प्रहार के कारण महादेव थोडा गिरकर फिर बैठ गए , ऐसी अवस्थावाले महादेव तुम्हारी रक्षा करे |
गूढार्थ—सुभाषितकार के कल्पनाविलास को प्रणाम | जगत पितरौ का प्रेम प्रसंग और गंगा के कारण महादेवी का क्रोध दोनों ही अच्छे वर्णित किये है सुभाषितकार ने |
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डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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