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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *संहतिप्रशंसा* " ( संगठन माहात्म्य ) ( २९७ )
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*श्लोक*----
" अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका ।
तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः ।। " ( हितोपदेशः )
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*अर्थ*----
संघटन और ऐक्य की शक्ति बहुत बडी है । छोटी - छोटी बातों से भी संघटन कार्यसिद्धी देता है । देखिए -- घास को एकत्र करके उससे जो दोरखण्ड बनता है उससे ही बडे मद् मत्त हाथी को भी बांधा जाता है ।
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*गूढ़ार्थ*----
यतकश्चित घास भी जब एकत्र होकर संघटन कर लेता है तो बडे से बडा हाथी भी उससे काबू में कर सकते है । स्वर्गीय श्री. भा. वर्णेकर जी ने तो दो काव्य संघटन शक्ति पर लिखे हुए है । जो अत्यंत चिन्तनीय और मननीय है । हर क्षेत्र में यदि संघटन अच्छा होता है तो जीत पक्की ही रहती है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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