|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *नवरसवर्णनम्* " ( १६४ )
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" *बीभत्सरसनिर्देशः* "
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*श्लोक*----
" विकीर्णहरिचन्दनद्रविणि यत्र लीलालसा
निपेतुरतिचञ्चलाश्चतुरनकामिनीदृष्ट्यः ।
तदेतदुपरि परिभ्रमन्निबिडगृधजालं जनैः
लुठत्कृमिकलेवरं पिहितनासिकैवीक्ष्यिते " ।। ( शा. प . )
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*अर्थ*----
जिसके वर्ण की कान्ती पीले चन्दन जैसी मोहक थी । जिसके गौरवर्ण की तरफ और सौन्दर्य की तरफ चञ्चल और चतुर स्त्रियाँ भी मूडमूड कर कौतुकदृष्टी से देखती थी । आज उसी सुन्दरी के देह के शव पर गिद्ध की टोली बैठी है और कीट उसके शव पर घुम रहे है और लोग नाक दबाकर उस शरीर की तरफ देख रहे है ।
छी ! छी ! सौन्दर्य की कितनी यह विकृत दशा ।
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*गूढ़ार्थ*----
नश्वर देह का कितना भीषण वास्तव सुभाषितकार ने हमे दिखाया है। मृत्यु ना तो सौन्दर्य देखता है ना लिङ्ग ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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