Tuesday, September 22, 2020

Double meanings in a Sanskrit puzzle

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *प्रहेलिकाः* " ( १६८ )
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     *श्लोक*----
     " द्वन्दोऽहं  द्विगुरपि  चाहं ,  मद्गेहे  नित्यमव्ययीभावः ।
       तत्पुरुष  कर्मधारय ,  येनाहं  स्यां  बहुव्रीहिः " ।।
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    *अर्थ*----
     मैं  'द्वंद्व'  हूँ , मैं  ' द्विगु ' भी  हूँ । मेरे  घर  में  हमेशा  ' अव्ययीभाव ' रहता  है ।  तत्पुरुष  कर्मधारय  होगा  तो  मैं  ' बहुव्रीही ' हो  जाऊंगा ।
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    *गूढ़ार्थ*---
  प्रस्तुत  प्रहेलिका  में  प्रथमदर्शनी  ध्यान  में  आते  है  वह  सब  समासों  के  नाम  -- द्वंद्व ,द्विगु ,अव्ययीभाव, कर्मधारय ,तत्पुरुष  और  बहुव्रीहि !
परंतु  उन  शब्दों  की  तरफ  ध्यान  दोगे  तो  समझ  में  आयेगा  कि  बोलने वाले    व्यक्ति  के  घर  में  के  दारिद्रय  का  दर्शन  यहाँ  पर  हो  रहा  है ।
   इस  सुभाषित  में  जिसकी  गृहदशा  प्रस्तुत  की  है  वह  कह  रहा  है की--- मैं  " द्वंद्व " हूँ  मतलब  घर  में  हम  दो  लोग  है । मैं  " द्विगु " भी  हूँ , मतलब  हमारे  यहाँ  दो ( गु ) गायें  है । मेरे  घर  में  हमेशा " अव्ययीभाव " रहता  है  मतलब  व्ययीभाव  की  चिन्ता मतलब  खर्चे  के  बारे  में  हमेशा  नकार  ही  रहता  है । 
  फिर  वह  खुद  को  कह  रहा  है --- " तत्पुरुष  कर्मधारय " मतलब तत्  पुरुष  कर्म  धारय मतलब  हे ! गृहस्थ  तुम  कर्म = काम ,  कष्ट  करो तो  ही " बहुव्रीहि " मतलब बहु = बहुत । व्रीही = धान्य ।  तेरे  घर  में  आयेगा ।
और  हम  पति -- पत्नी  और  दो  गायें  इन  सबको  बहुत  अन्न  प्राप्त  होगा ।  
कितना  सुन्दर  सुभाषित  है  न ?  समास  के  नामों  में  से  किसिके  घर  का  " अठराविश्व  द्रारिद्र्य " प्रकट  हो  रहा  है । और  कष्ट  करके  संपन्नता  प्राप्त  करने  की  उसकी  इच्छा  भी  दृगोचर  हो  रही  है ।
समास  पाठांतर  के  लिए  यह श्लोक  बहुत  उपयुक्त  है । 
संस्कृत  भाषा  का  श्लोकसामर्थ्य  भी  यहाँ  पर  दिखता  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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