Wednesday, July 22, 2020

Sanskrit Subhashitam - conversation between Shiva & Parvati in the form of Q& A

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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     " *पातुवः* " ( १८३ )
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    *श्लोक*-----
  " कस्त्वं ? "  "शूली "  " मृगय  भिषजं  " 
             " नीलकण्ठः  प्रियेऽहं "
     " केकामेकां  कुरु " " पशुपति " " नैंव  दृश्ये  विषाणे " ।।
      " स्थाणुर्मुग्धे ! " " न  वदति  तरु " " र्जीवितेशः शिवाया "
       " गच्छाटव्या " मिति  ह्रतवचाः
          पातु  वश्चन्द्रचूडः ।।
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  *अर्थ*----
शंकर  जब घर  को लौटे  तो  पार्वती  ने  द्वार  नही  खोला  और  पूछने  लगी ---पार्वती-- कौन  हो आप ? शंकर  ---- मैं  शूली हूँ ।
   पार्वती-- कपाल शूल है तो वैद्य के पास जाओ ।
    शंकर -- प्रिये  मैं  निलकण्ठ  हूँ  ।
पार्वती--- नीलकण्ठ  मतलब  मयूर ? तो  फिर  केकारव  करके  दिखाओ।
   शंकर--- वैसा  नही  मैं  पशुपति  हूँ ।
   पार्वती --- आपके  सिंग  नही  दिख  रहे फिर ?
  शंकर--- मुग्धे ! मैं  स्थाणु  हूँ  ।
पार्वती--- मतलब  आप  वृक्ष  हो ?  लेकीन  वृक्ष तो कभी  बोलता  नही ।
शंकर--- मैं  शिवी  का  प्राणनाथ  हूँ ।
   पार्वती--- अच्छा ! मतलब  आप लोमड़ी  के  प्राणनाथ  हो ?  फिर  यहाँ  क्या  कर  रहे  हो ?  जंगल  में  जाईये ।
    इस  तरह से  प्रत्येक  शब्द  का  दूसरा  ही  अर्थ  लेकर  पार्वतीने  शंकर  को  निरुत्तर  किया । ऐसा  निरुत्तर  हुआ  शंकर  आपकी  रक्षा  करे ।   
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 *गूढ़ार्थ*--- 
शूली , नीलकण्ठ , पशुपति , स्थाणु और  शिवी  इन  सबके  अर्थ  पर  सुभाषितकार  ने  श्लेष  साधा  है ।  शंकर -- पार्वती  पर  मानवीयता का  आरोप  कर के यहाँ  पर  सुभाषितकार  ने  उत्तम  नर्म  विनोद  किया  है ।
  हमे  हंसी  छुटे  बिना  नही  रहती ।
   शंकर  आप  सबकी  रक्षा  करे ।
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /   महाराष्ट्र 
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