Monday, July 27, 2020

Rivers lose their name at the end - Mundakopanishad - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *सामान्यनीति* " (२१३ )
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   *श्लोक*---
   " यथा  नद्यः  स्यन्दमानाः  समुद्रे  अस्तं गच्छन्ति  नामरूपे  विहाय ।
     तथा  विद्वान  नामरुपाद्  विमुक्तः  परात्परं  पुरुषम्  उपैति  दिव्यम् ।। "
             ( मुण्डकोपनिषद्  ३• २• ८ )
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   *अर्थ*----
   जिस  तरह  से  नदियां  अपना  नाम  और  रूप  छोडके  समुद्र  में  विलीन  हो  जाती  है , उसी  तरह विद्वान  ( आत्मज्ञानी )  मनुष्य  अपना  नाम  और  रूप  इससे  मुक्त  होकर  श्रेष्ठ ऐसे  दिव्य  पुरुष  के  पास  पोहचता है।
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  *गूढ़ार्थ*----
  उपनिषद  का  वाक्य  सुभाषितकार  ने  यहाँ  पर  सुभाषित  के  तौर  पर  दिया  है ।  अर्थात  इसमें  बहुत  गहन  अर्थ  तो  है ही।  विद्वान  को  आत्मज्ञान  कब  होगा ?  जब  वह  अपना  अहंभाव  छोडेगा । उसके  बाद   ही  उसे  श्रेष्ठतर  दिव्य  पुरुष  मतलब  परमात्मा  की  प्राप्ति  संभव  है ।
   और  ऐसे  ही  आत्मज्ञानी  पुरुष  करते  है।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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