Wednesday, July 8, 2020

Miser-Sanskrit Subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *कृपणनिन्दा* " ( १८४ )
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   *श्लोक*---
   " कृपणेन  समो  दाता  न  भूतो  न  भविष्यति ।
   अस्पृशन्नेव  वित्तानि  यः  परेभ्यः  प्रयच्छति " ।। ( कवितामृतकूपः )
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*अर्थ*---- 
कृपण  के  जैसा  दान  देनेवाला  कोई  हुआ  नही  और  होगा  भी  नही , वह  इतना  निस्पृह  और  त्यागी  है  की अपने   संपत्ति  को  हाथ  से  स्पर्श  भी  नही  करता  है  और  दूसरे  को  दान  दे  देता  है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
   कृपण  मनुष्य  आयुष्यभर  धन  जमा  करके  ही  रखता  है  और  अपने  हाथों  से  वह  किसी  को  भी कभी  नही  देता ।  इसलिये  उसके  मृत्यु  के  पश्चात्  वह  धन  इतर  लोग  ही  ले  जाते  है । 
  अहा !  कितनी  निस्पृहता, निस्संगता ,  और  दानी  रहता  है  कृपण।
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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