|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिका* " (२७१ )
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*श्लोक*---
" अंगुल्या कः कपाटं प्रहरति ? "
" अंगुल्या कः कपाटं प्रहरति ? कुटिलो माधवः , किं वसन्तो ?
नो चक्री , किं कुलालो ? न हि धरणीधरः किं द्विजिह्वः फणीन्द्रः ?
नाहं घोराहिमर्दी , त्वमसि खगपतिर्नो हरिः किं कपीन्द्रः ?
इत्येव गोपकन्याप्रतिवचनजितः पातु वश्चक्रपाणिः " ।।
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*अर्थ*----
यह प्रहेलिका गोपांगना और श्रीकृष्ण इन दोनों में का मजेदार संवाद है । श्रीकृष्ण गोपीका का द्वार खटखटा रहा है । गोपीका अंदर से पूछतीं है --द्वार कौन खटखटा रहा है ?
श्रीकृष्ण उत्तर देता है --' मैं वह खोडकर माधव '!
गोपी---'क्या वसन्त '?
श्रीकृष्ण--'नही नही वह मैं चक्रधारी '!
गोपी-- ' मतलब कुम्हार क्या ' ?
श्रीकृष्ण---' नही नही मैं धरणीधर हूँ ' !
गोपी-- ' मतलब शेषनाग तो नही ' ?
श्रीकृष्ण--- ' नही नही मैं वह भयंकर सर्प का नाश करने वाला हूँ '!
गोपी--- ' कहीं पक्षीराज गरूड़ तो नही ' ?
श्रीकृष्ण--- ' नही नही मैं हरि हूँ '!
गोपी--- ' मतलब वानरश्रेष्ठ तो नही '?
इस तरह से वह गोपकन्या ने जिसको अपने प्रत्युत्तर से निरुत्तर किया वह चक्रपाणी आप सबकी रक्षा करे !
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*गूढार्थ*---
श्रीकृष्ण ने जो अपने अलग-अलग नाम बताएं जैसे-- माधव , चक्री , धरणीधर , घोराहिमर्दी , हरि इन सब नामों पर सुभाषितकार ने श्लेष साधा है ।
माधव= मधुकुल में जन्मा यादव । और वसन्त ऋतु = मधु--माधव ये दो मांसो में से एक !
चक्री= सुदर्शन चक्र धारण करने वाला । और चक्र घुमाकर मटकी बनाने वाला कुम्हार !
धरणीधर= नृपती । और पृथ्वी का भार पेलनेवाला शेषनाग !
घोराहिमर्दी = कालियामर्दन करने वाला और पक्षिराज गरूड़ !
हरि = श्रीकृष्ण और वानर !
इस तरह से दरवाजे के बाहर से श्रीकृष्ण ने जो --जो अपने विशेष नाम बताये वह सब को गोपकन्या ने भी किसी और को वह विशेषण लगाकर श्रीकृष्ण को निरुत्तर किया ।
ऐसा यह भक्तवत्सल श्रीकृष्ण हरी हमारा रक्षण करे !
श्रीकृष्ण की फजीहत करने वाला यह श्लोक उसका सह्रयत्व और सुभाषितकार का शब्द ज्ञान प्रकट कर जाता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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