Tuesday, June 2, 2020

Valentine's day in India - An article

|| प्रेम दिवस की शुभकामनाएं ||
Happy  Valentine's Day

।। एकं वस्तु  द्विधा  कर्तुं  बहवः सन्ति  धन्विनः।
जयत्येकः स्मरो  धन्वी  द्वैतमेकीकरोति  यः ।।
अर्थः-- एक का छेदन  करके उसके दो टूकड़े  करनेवाले धनुर्धर  , जगभर   में  बहुत  मिल  जायेंगे  ;
किन्तु  द्वैत  ( दो ) का अद्वैत  ( एक )  करनेवाला  धनुर्धर  वो केवल  मदन  ही  है  ; उसका  विजय  होवे । 
आज  तो  भारतीय संस्कृति का प्रेम  दिवस  नही  है  ।  लेकीन  पुरी दुनिया  आज  का  दिन  प्रेम  दिवस  के  रूप  में  मनाती है ।  भारत  में  भी  प्रेम  दिवस  मनाया  जाता  था। लेकीन  कब ?  तो 
 हमारा प्रेम दिवस कब होता है ? तो वह बसन्त पञ्चमी को हो गया | भारतीय संस्कृति का प्रेम दिवस किसी देवता या संत ने नही तय किया तो वह हमारे निसर्ग ने तय किया है | हाँ ये जरुर है कि हमारे यहाँ भी प्रेम की देवता है | वह जोड़ी रति-मदन के नाम से जानी जाती है | भारतीय संस्कृति निसर्ग को अपने समीप समजती हें | और मनुष्य जन्म प्राप्त होने के बाद बौध्दिक उन्नति को महत्त्व देनेवाली हें | माघ मास में ही बसन्त ऋतु के  लक्षण दिखने लगते हें | पतझड के बाद पेड़ो पर नये कोंपले आने लगते हें | ये सब नवनिर्मिती की आहट होती हें | ये नवनिर्मिति का चैतन्य या कोंपले ही प्रेम का प्रतीक हें | हमारे यहाँ प्रेम को भी देवत्व दिया गया हें| प्रेम का देव हें मदन | मदन का सम्बम्ध काम के साथ हें | बसन्त पञ्चमी से लेकर फाल्गुन शुध्द पौर्णिमातक ये उत्सव चलता हें | कामदेव मदन का जन्म इस दिन हुआ ऐसा माना जाता हें , इसलिए इस दिन रति-मदन की भी पूजा की जाती हें | 
प्रेम का सम्बम्ध रस के साथ होता हें , और रस आनन्द रूप हें | किसी भी वस्तु में प्रेम निर्माण हो गया तो उसमे रूचि निर्माण होती हें , और उसमे आनन्द आने लगता हें | इसलिए रति ये आनन्द का और प्रेम का प्रतीक हें | जिस वस्तु में रूचि निर्माण होती हें , उसमे आनन्द आने लगता हें | और फिर वहां पर रस निर्मिती होती हें | रसनिर्मिती होने पर ही प्रेम उत्पन्न होता हें | उलट अर्थ से देखोगे तो जहाँ पर प्रेम होता हें उसी वस्तु में रस निर्माण होता हें | 
प्रेम और रस ये दोनों समांतर कल्पना हें | किसीसे प्रेम हो जाने के बाद सब अच्छा ही दिखने लगता हें | रस ये आनन्ददायी ही होता हें | आनन्द हमेशा शुध्द होना चाहिए | आनन्द से मन प्रफुल्लित होना चाहिये | और उसके बाद मन शांत होना चाहिये | शुध्द आनन्द ही मन को शान्ति प्रदान करता हें | क्रूरता में भी किसी किसी को आनन्द प्राप्त होता हें, तो किसी किसी को नशा करके भी आनन्द आता हें | किन्तु यह ज्यादा समय तक टिकता नही हें | इसलिए आनन्द संयमित शुध्द और वौध्दिक होना चाहिये | व्यवहार में कोई भी प्रेम अशाश्वत ही हें | क्यों कि वह प्रेम किसी ना किसी पर अवलंबून रहता हें | और तो और प्रेम का सम्बध शरीर से जुडा हुआ हें | इसमे से ही उसी का सतत विचार होता हें और फिर आगे चलकर प्रेम सम्बध मन से जुड़ता हें | ये प्रेम की प्रक्रिया अच्छे से समज में आनी चाहिये | 
यहाँ पर श्रीकृष्ण और रूक्मिणी के प्रेम का उल्लेख करना बहुत जरूरी होता हें | दोनों ने एक दुसरे को कभी नही देखा था पर गुणवर्णन सुनकर एक दुसरे से दोनों प्रेम करते थे | यहाँ पर शारीरिक प्रेम नही था तो वह आत्मिक प्रेम था , दोनों का विवाह भी हुआ | लेकिन मेरे मत से प्रेम जगत में ये  सब से अनोखा और निराला उदाहरण हें | जो सिर्फ एक दिन प्रेम दिवस मनाते हें ,और वह भी एक दुसरे का बाह्य स्वरूप देखकर |
भारतीय संस्कृती में प्रेम को बहुत ही उच्च माना गया हें | प्रेम एक से एक बार हो गया और वहीँ पर रुक गया ऐसा नही होता हें | प्रेम ये सतत और निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया हें | इसलिए हमारे संस्कृति की कुटुंबव्यवस्था श्रेष्ठ हें | प्रियकर-प्रेयसी इन  दोनों का शुरू का प्रेम जब पती-पत्नी में बदलता हें तब उसमे और भी गहराई आती हें, फिर बच्चे होने के बाद प्रेम का केंद्रबिंदु बदल जाता हें , नाती-पोती होने के बाद फिरसे प्रेम का केंद्रबिंदु बदलता हें | यही भारतीय संस्कृति के  प्रेम का प्रवास हें | हमारे यहाँ ब्रह्मचारी वात्सायन कामसूत्र लिखकर शारीरिक प्रेम का महत्त्व समझाता हें | कामसूत्र में ये श्लोक मिलता हें...........
'' रक्षन् धर्मार्थकामानां स्थितिं स्वां लोकवर्तिनीम् |
अस्य शास्त्रस्य तत्वज्ञः भवत्येव जितेन्द्रियः || [कामसूत्र ७.२.५६] 
भारतीय संस्कृती  में धर्म एवं अर्थ के समान ' काम ' भी एक पुरुषार्थ माना गया हें | जिसकी परिणति वैवाहिक सुखप्राप्ति में होती हें |
तो खजुराहों की कलाकृतियाँ भी हमे शारीरिक प्रेम का महत्त्व बताती हें | ऐसा नही की भारतीय संस्कृती में शारीरिक प्रेम को महत्त्व नही हें | लेकिन पाश्चात्यो की तरह केवल वही श्रेष्ठ नही माना गया हें | इसलिए हमे सिर्फ एक दिन valentine's day मनाकर प्रेम व्यक्त करने की कोई आवश्यकता नही | 
हमारा प्रेम मुनि वात्सायन के कामसूत्र से शुरू होकर श्रीकृष्ण की भगवद्गीता में जाकर रुकता हें , रुककर सोचता हें और फिर वहां से उसका प्रवास अनन्त की ओर शुरू हो जाता हें | 
एक बात ये भी सच हें कि कभी भी दोनों के संमती के बिना प्रेम का परिपाक नही हो सकता | प्रेम का प्रवास शरीर से आगे चलकर मन तक और उसके भी आगे सुबुध्दी तक हो गया तो हमे प्रेम में शाश्वत आनन्द और रसानुभूति प्राप्त होगी ये निश्चित हें | सद्सद्विवेक बुध्दी से प्राप्त प्रेम में मिलनेवाला आनन्द विवेकपूर्ण होता हें . शुध्द होता हें | और शाश्वत भी होता हें | एक समय में बहुत लोगों को आनन्द मिलता हें , इसलिये वह दैवी होता हें | 
मित्रों मेरा ये लेख कैसे लगा ये बात मुझे जरुर बताना | 
मेरे  फ्रेन्ड लिस्ट  मे जो  मेरे तरूण  भांजे  , भतीजे, भांजीया  वगैरे है  , उनके  साथ  एक  दिन  प्रेम  दिवस  पर  बहस  छिड़ गयी  थी । इसलिए आज  का  ये  लेखन  प्रपञ्च ।
और आज जो लोग प्रेम दिवस मनाना चाहते हें , उन्हें शुभेच्छा | 
आपकी अपनी ---
डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र

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