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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *श्रृंगाररसः प्रकरणम्* " ( १८५ )
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*श्लोक*---
" एकं वस्तु द्विधा कर्तुं बहवः सन्ति धन्विनः ।
धन्वी स मार एवैको द्वयोरैक्यं करोति यः " ।।
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*अर्थ*----
जग में अनेक वीर है जो एक वस्तू के दो करते है पर वह कामदेव मात्र अलग ही योद्धा है । जो दो व्यक्तियों को एक करता है । वीर के प्रहार के कारण एक व्यक्ति के दो हो जाते है । इसलिये वह परमवीर नही है क्या ?
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*गूढ़ार्थ*----
जो शूरवीर होता है वह उसके तलवार से एक के दो टुकड़े कर देता है पर कामदेव के हाथ में न तो कोई शस्त्र है और न ही कोई अस्त्र फ़िर भी वह दो प्रेमीयों को एक कर देता है । तो असली परमवीर कामदेव ही ठहरा न ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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