|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
---------------------------------------------------------------------------------------
" *पातुवः* " ( १९० )
-------------------------------------------------------------------------------------
*श्लोक*---
"हे हेरम्ब ! " " किमम्ब ? " " रोदिषि कथं ? "
" कर्णौ लुठत्यग्निभूः "
" किं ते स्कन्द ! विचेष्टितं ? "
" मम पुरा संख्या कृता चक्षुषाम् " ।।
" नैतत्तेऽप्युचितं गजास्य ! चरितं "
" नासां मिमितेऽम्ब मे "
तावेवं सहसा विलोक्य हसित -----
व्यग्रा शिवा पातु वः " ।।
---------------------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*----
पार्वती-- हेरम्ब क्यों रो रहे हो ?
हेरम्ब -- यह स्कंद मेरे कान खिंच रहा है ।
पार्वती -- स्कंद ऐसा क्यों कर रहे हो ?
स्कंद -- यह मेरी आंखें गिन रहा था । ( षडानन= छ मुखवाला )
पार्वती---- गणेश आपको यह शोभा नही देता ।
गणेश--- अम्ब ! यह मेरी शुण्डा का हाथ से मापन कर रहा था।
ऐसा कभी समाप्त न होनेवाला भांडण ( झगड़ा ) सुनकर और उन दोनों की तरफ देखते हुए हंसने में गर्क हुई पार्वती आप लोगों की रक्षा करे ।
---------------------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*----
शिव के दोनो पुत्रों में झगड़ा हो गया और फिर गणपति रोने लगा उस समय पार्वती का उन दोनो को समझाना सुभाषितकार ने कितने सुन्दर तरीके से यहाँ पर लिखा है । हमारे घर में तो छोटे मोटे झगडे चलते ही है । या फिर बचपन में हमारे भाई -- भाई या भाई -- बहन के झगड़े तुरंत याद आये की नही नही ? ऐसी मानवारोपिता करके गणेश और कार्तिकेय का झगड़ा यहाँ पर हमे दिख रहा है ।
और किसकी बाजू ले यह न समझने के कारण पार्वती उन दोनों की तरफ़ देखकर हंसने लगी । ऐसी हंसती हुई पार्वती आप लोगों की रक्षा करे । 😃😃
---------------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
----------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
-----------------------------------
✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍
No comments:
Post a Comment