Tuesday, May 12, 2020

Live your life for others - Sanskrit Subhashitam

|| *ॐ* ||
     " *सुभाषितरसास्वादः* "
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     " *जीवितसाफल्यम्* " ( जीवन की सार्थकता ) ( ५२ )
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*श्लोक*---
  " यस्यिज्जीवति  जीवन्ति  बहवः  स  तु  जीवति ।
     काकोऽपि  किं  न  कुरुते  चञ्चा  उदरपूरणम्  " ।।
   ( भर्तृहरि  सु. सं. ) 
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*अर्थ*----
जिसके  जिने  के  कारण   अनेक  लोग  जिते  है ।  वही  व्यक्ति  सच  में  जीवन  जिता  है ।  खुद  के लिए  कोई  भी  जीता  पर इसमें  क्या  विशेष?
कौवा  भी  अपनी  चोंच  से  अपना  पेट  भरता  ही  है।
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*गूढ़ार्थ*----
यहाँ  कौए के  माध्यम से  सुभाषितकार  हमे  बता  रहा  है  कि  अपना  पेट  तो  इधर उधर  चोंच  मारके  कौआ  भी  भर  ही लेता  है।
क्या मनुष्य का  जीवन  ऐसा होना चाहिये?  दूसरो  की  भी  जो  मदद  करता  है या  जिसके  जिने  से  बहुत लोगों  की  जिंदगी  संवर  जाती   वही  आदमी  का  जीवन  सफल  होता  है ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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