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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *नवरसप्रकरणम्* " ( १५८ )
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साहित्य में रसों की संख्या नव बतायी गयी है । रस मतलब एखाद वचन सुनकर ह्रदय को प्राप्त होनेवाला अलौकिक आनंद ।
वाड्मय में नव रस बताये गये है -- श्रृंगार , हास्य , करुण , रौद्र , वीर , भयानक , बीभत्स , अद्भुत और शांत ।
श्रृंगाररस को रसों का राजा ( रसराज ) कहा जाता है ।
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" *श्रृंगाररस* -- *मनसिजप्रशंसा*( *कामदेव*)
*श्लोक*----
" अनङ्गेनाबलासङ्गाज्जिता येन जगत्त्रयी ।
स चित्रचरितः कामः सर्वकामप्रदोऽस्तु वः " ।। ( शार्ङ्गधरपद्धतिः )
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*अर्थ*----
श्रृंगाररस का स्वामी है कामदेव । वह अनंग मतलब जिसे शरीर नही है । उसे शरीर ना होकर भी तीनों लोग ( आकाश , पृथ्वी और पाताल ) को जिता है । उसे यह कैसा सिद्ध हुआ ? स्त्रियों की साहय्यता से क्यों की स्त्रियाँ अबला है उनकी साहय्यता से उसने यह कार्य सिद्ध किया है । उसका चरित्र तो विचित्र ही है वह मनुष्य से क्या करवायेगा और खुद क्या करेगा इसका कुछ भरोसा नही है । ऐसा वह कामदेव आप सबकी इच्छापूर्ति करनेवाला होवो ।
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*गूढ़ार्थ* ----
स्त्रियाँ अबला होती है इसलिए बडी आसानी से कामदेव ने उनकी साहय्यता से जग जिता है जबकि वह अनंग है फिर भी उसका जग जितना विचित्र नही है क्या ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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