Thursday, March 19, 2020

Dialoag between buddhi & ahamkar - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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   " *आत्मा का महत्त्व* "  ( १३३ )
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*श्लोक*---
   " अहंकारो  धियं  ब्रूते  " मा  सुप्तं  प्रतिबोधय  ।
      उदिते  परमानन्दे  न  त्वं ,  नाहं ,  न  वा  जगत् " ।।
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*अर्थ*----
अहंकार  बुद्धि  को  कह  रहा  है ,  " वह  जो  सोया  हुआ  (आत्मा) है ,उसे  मत  जगाओ ।  क्यों  कि  परमानन्दस्वरूप  वह ( आत्मा )  एक  बार  जागृत  हो  गया  तो  , ' तू  और  मैं '  और  यह  सब  जगत्  नष्ट  हो  जायेगा " ।
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  *गूढ़ार्थ*---
  इस  रूपक  में  कितना  बडा  अर्थ  छुपा  है  यह  बारकीसे  पढने  के  बाद ही  समझ  में  आयेगा ।
बुद्धि  और  अहंकार  का  प्रेमविवाह  हुआ  है उन्हे  अपने  प्रणय  का  स्वच्छन्द  खेल  खेलना  है । लेकीन  अहंकार  को  डर  है  कि  कहीं  बुद्धि  आत्मा  को  जागृत  न  कर  दे  इसलिए  वह  उसे  मना  कर  रहा  है । 
 क्यों कि  एकबार  वह  पूर्णानन्दस्वरूप  आत्मा  जागृत  हो  गया  कि  ---
" अहंकार  और  बुद्धि  "  और  यह  " संसार "कोई  अस्तित्व  ही  नही  रहेगा  ।  
  अहंकार  और  बुद्धि  सबको  ही  होती  है  किन्तु  अच्छे  कर्मों  के  लिए  अहंकार  हमेशा  बुद्धि  को  रोकता  है  । 
सुभाषितकार  ने  छोटेसे  दो  पंक्तियों  में  हमे  जीवन  का  गहन  और  गहरा  सार  बताया  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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