कुरङ्गमातङ्गपतङ्गभृङ्ग-
मीना हताः पञ्चभिरेव पञ्च।
एकः प्रमादी स कथन्न हन्यते
यः सेवते पञ्चभिरेव पञ्च॥
हिरन हाथी पतिंगा भौरा और मछली-
क्रमशः शब्द, स्पर्श, रूप, गन्ध तथा रस-
इनमें केवल एकमें आसक्त होकर मारे जाते हैं।
तथा प्रमादी व्यक्ति, पाँचों इन्द्रियों के
अधीन रहता हुआ, कैसे बच सकता है नारायण।
श्रीहरिःशरणम्।
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