|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *काकान्योक्ति* " ( १३२ )
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*श्लोक*---
" काकस्य गात्र यदि काञ्चनस्य
माणिक्यरत्नं यदि चञ्चुदेशे ।।
एकैकपक्षे ग्रथनं मणीनां
तथाऽपि काको न तु राजहंसः " ।।
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*अर्थ*---
कौऐ का शरीर यदि सोने का किया जाय , उसकी चोंच रत्न की जाय , और दोनों पंखों पर रत्न जड दिये जाय तो भी वह राजहंस नही होनेवाला ।
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*गूढ़ार्थ*----
कौआ कितना भी सजधजकर तयार हो जाये पर वह कभी राजहंस नही हो सकता । क्योकि राजहंस का नीरक्षीरविवेक वाला गुण कौए में नही रहता । समाज में ऐसे लोग होते है जो सौन्दर्य तो खरीद सकते है पर गुण नही । और गुणों से ही आदमी श्रेष्ठ बनता है न कि सौन्दर्य से ।
मराठी में तुकाराम का प्रसिद्ध वचन ----
" येथे पाहिजे जातीचे ऐर्या गबाळ्याचे काम नोहे "
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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