Wednesday, February 12, 2020

contentment is great - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
      " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    "  *व्यवहारनीति* " ( ९२ )
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    *श्लोक*-----
 "  सर्पाः  पिबन्ति  पवनं  न  च  दुर्बलास्ते  
शुष्कैस्तृणैर्वनगजाः  बलिनो  भवन्ति ।
कन्दैफलैर्मुनिवराः  क्षपयन्ति  कालम् 
संतोष  एव  पुरुषस्य  परं  निधानम् ।।
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*अर्थ*-----
   सांप  वायु  पीकर  रहता  है  तो  भी  वह  कभी  दुर्बल  नही  होता ।  
हाथी  सुखा  घास  खाकर  भी  शक्तिवान  होता  है ।
ऋषि मुनि  कंद- मुल खाते  है  तो  भी  वह  सामर्थ्यवान  होते  है ।
  संतोष  ही  मनुष्य  का  श्रेष्ठ  आधार  है ।
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*गूढ़ार्थ*----
समाधान  में  सुख  माननेवाले  को  परिस्थिति  अनुकूल  नही  भी  रही  तो  बहुत  फर्क  पडता  नही ।  संतोष  मानने  पर  है ।  अपने  मन  पर  है ।
घोड़े  पे  सवार  व्यक्ति  कभी  नही  देखनी  चाहिए  तो  पैदल  चलनेवाले  व्यक्ति  की  तरफ़  देखना  चाहिए  ऐसा  अनुभवी  लोग  बताते  है ।
अपने  से  जिसके  पास  कम  है  उसकी  तरफ़  देख  कर  संतोष  करना चाहिए ।  उनसे  ईर्षा  नही  करनी  चाहिए ।
अपनी  किसी के  साथ  भी  तुलना  ना  करते  हुए  अपनी  अपने  साथ  ही  स्पर्धा  करनी  चाहिए ।
सुभाषितकार  ने  तीन  उदाहरण  देकर  हमे  समझाया  है  कि  प्रतिकूल परिस्थितियों  में  भी  हमे  संतोष  से  रहकर  अपना  स्थान  और  स्वत्व  को  संभालना  आना  चाहिए ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /   महाराष्ट्र 
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