Thursday, February 13, 2020

Conquering Indiruyas- Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
     " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *संकीर्णनीति* " ( ११५)
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    *श्लोक*-----
   " जीयन्तां  दुर्जया  देहे  रिवश्चक्षुरादयः ।
जितेषु  तेषु  लोकोऽयं  ननु  कृत्स्नस्त्वया  जितः " ।।
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    *अर्थ*----
  अपने  शरीर  में  स्थित  आंखें , कान , नाक , जिव्हा  और  त्वचा  इत्यादि  अजिंक्य  शत्रु  है ।  इन्हे  अगर  जीत  लिया तो  आप  पूरा  जगत  जीत लिया  ऐसा  समझिये ।
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*गूढ़ार्थ*----
   शरीर  स्थित  पञ्चेन्द्रिय  जितने  महत्वपूर्ण  है । उतने  ही  वह  अजिंक्य है ।  उनका  दैनंदिन  जीवन  जीने  के लिए  जितना  महत्त्व  है  उतना  ही  कठिन  उन्हे  काबू में  रखना ।  हमारी आंखें  हमेशा सौन्दर्य  ही देखना पसंद करती  है ।  दो  सेंकद  के  लिये  भी आंखे  बंद  करो  तो  हमारे  सामने  ईश्वर  नही  आता  तो  अपनी मनपसंद  चीज  आती  है। हमारे  कान  भी  भजन  नही  बल्कि  जो  पसंद  है  वही  सुनना  चाहती  है । नाक  भी  हमेशा  सुगंध  ही  पसंद  करती  है ।  जिव्हा  का  अनुभव  तो  हम  सबको  है ही । उसके  बारे  में  ज्यादा  कहने  की  जरूरत  ही नही । और  हमारी  त्वचा  जितनी  सहजता  से  वायु  का  अनुभव  करती  है  उतनी  सहजता से  और  किसी  चीज  का  नही ।
यह  पञ्चेन्द्रिय  अगर काबू  में  रखे  गये  तो  मनुष्य  इस  दुनिया  में  अजेय  हो  जायेगा ।  सुभाषितकार  ने  बडी  खुबसूरती से  हमे  बाह्य शत्रु  की  अपेक्षा  यह  अंतर्गत  शत्रु  ही  ज्यादा  काबू  में  रखने  को  कहा है ।
बडा कठिन  कार्य  है यह ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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