|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *अन्तरालापाः* " ( ५३ )
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*श्लोक*----
" या पाणिग्रहलालिता सुसरला तन्वी सुवंशोद्भवा ।
गौरी स्पर्शसुखावहा गुणवती नित्यं मनोहारिणी ।
सा केनापि ह्रता , तया विरहितो गन्तुं न शक्नोम्यहम् ।
" रे भिक्षो , तव कामिनी ? न हि नहि प्राणप्रिया यष्टिका ।।
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*अर्थ*----
कोई एक भिक्षू की ' प्रिया ' खो गयी । वह उसका गुणवर्णन और स्वरूपवर्णन किसी दुसरे के पास कर रहा है ---
वह कह रहा है--- ' मेरी प्रिया कितनी सरल थी कितनी सडसडीत थी।
कितनी बार मैने अपने हाथों उसे लाड लडाया था । उत्तम वंश में उसका जन्म था । वह गौरवर्णी थी । हमेशा मुझे उसके स्पर्श से सुख मिलता था । वह गुणों की खान ही थी । उसकी तरफ कभी देखो तो वह सुन्दर ही दिखती थी ।
अरेरे ! ऐसी मेरी प्रिया का किसीने अपहरण कर लिया है ।
उसके विरह के कारण मैं कहीं जा नही सकता ।
उस ब्राह्मण यह सब बाते सुनने के बाद सुननेवाले ने पुछा --
अरे भिक्षुका , क्या वह ' प्रिया ' तुम्हारी पत्नी थी ?
इसपर उस भिक्षुक ने कहा---
नही नही वह तो मेरी प्रिय छड़ी !
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*गूढ़ार्थ*----
इस श्लोक के सारे विशेषण देखिए--- उदा. पाणिग्रहलालिता , सुसरला , तन्वा , गौरी , स्पर्शसुखावहा , गुणवती , मनोहारिणी यह सब श्लेषयुक्त है । वह स्त्रीवर्णनपर है वैसे ही छडी का भी वर्णन करने वाले है । सुवंश इसका एक अर्थ अच्छे वंश में जन्म और एक अर्थ अच्छा बांबू । गुणवती अच्छे गुणों वाली और छडी के संदर्भ में खुटीपर टांगने के लिए मुठी को डोरी बंधी हुई ऐसा ।
सुसरला स्त्री के संदर्भ में सरलवृत्ती की और छडी के संदर्भ में जो तिरछी नही वह । तन्वी == कृशांगी स्त्री । छडी == पतली ।
गौरी== गोरी । छडी== सफ़ेद । स्पर्शसुखावह== आनंददायक स्पर्श वाली। मनोहारिणी == सुन्दर और मन प्रसन्न करनेवाली ।
' तयाविरहित ' उसके बिना । उसका विरह होने के कारण ।
प्रस्तुत श्लोक पढ़ने के बाद किसी सुन्दर स्त्री का वर्णन करते हुए भिक्षूक की छडी का वर्णन की अपूर्वाई ध्यान में आती है ।
फिर हम सोचने लगते है कि शायद वह भिक्षूक वृद्ध और गलितगात्र होगा । यष्टी मतलब छडी ही उसका आधार होगा ।
अब बेचारे का क्या होगा ?
सुन्दर स्त्री का वर्णन है ऐसा सोचते सोचते एक छड़ी का वर्णन आखिर वह निकलता है । इस विरोधाभास से अपेक्षाभंग के साथ करूणता का प्रत्यय आता है । और अद्भुतता का प्रत्यय आता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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