|ॐ||
सुभाषित रसास्वाद।। ( २९)
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" राजनीति"।।
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श्लोक-----
" षट्कर्णो भिद्यते मंत्रश्चतुष्कर्णः स्थिरो भवेत् ।
द्विकर्णस्य तु मंत्रस्य ब्रह्माप्यन्तं न गच्छति "।।
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अर्थ-----
मंत्रणा अथवा गुप्त वार्ता छह कानों तक गयी तो वह निश्चित ही फैल गयी है ऐसा समझना चाहिए । किन्तु चार कानों तक गयी वार्ता गुप्तता के साथ स्थिर रहती है । इतना ही नही तो दो कानों तक मर्यादित वार्ता अथवा रहस्य का पता तो ब्रह्मदेव भी नही जान सकता ।
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गूढार्थ----
भले यह श्लोक राजनीति में आता है किन्तु हमारे दैनंदिन जीवन में भी देखने को मिलता है । एखादी वार्ता हम दो-चार लोगों को बता दे तो जरूर कोई तीसरा व्यक्ति आकर हमे ही वह वार्ता सुनाता है । और हम अपने पक्के मित्र को भी कोई वार्ता बताये तो काफी हद तक वह सुरक्षित रहती है लेकीन पुरी तरह से नही भूल से भी उसके साथ मतभेद हो गये तो फिर वार्ता की गुप्तता संकट में आ जाती है । लेकीन कोई महत्वपूर्ण वार्ता या रहस्य हम अपने तक ही सीमित रखे तो ब्रह्मदेव भी आया तो वह रहस्य नही जान पायेगा ।
सुभाषितकार ने यहाँ विश्वास और कम बोलना दोनो की ओर इशारा किया है ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
सुभाषित रसास्वाद।। ( २९)
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" राजनीति"।।
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श्लोक-----
" षट्कर्णो भिद्यते मंत्रश्चतुष्कर्णः स्थिरो भवेत् ।
द्विकर्णस्य तु मंत्रस्य ब्रह्माप्यन्तं न गच्छति "।।
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अर्थ-----
मंत्रणा अथवा गुप्त वार्ता छह कानों तक गयी तो वह निश्चित ही फैल गयी है ऐसा समझना चाहिए । किन्तु चार कानों तक गयी वार्ता गुप्तता के साथ स्थिर रहती है । इतना ही नही तो दो कानों तक मर्यादित वार्ता अथवा रहस्य का पता तो ब्रह्मदेव भी नही जान सकता ।
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गूढार्थ----
भले यह श्लोक राजनीति में आता है किन्तु हमारे दैनंदिन जीवन में भी देखने को मिलता है । एखादी वार्ता हम दो-चार लोगों को बता दे तो जरूर कोई तीसरा व्यक्ति आकर हमे ही वह वार्ता सुनाता है । और हम अपने पक्के मित्र को भी कोई वार्ता बताये तो काफी हद तक वह सुरक्षित रहती है लेकीन पुरी तरह से नही भूल से भी उसके साथ मतभेद हो गये तो फिर वार्ता की गुप्तता संकट में आ जाती है । लेकीन कोई महत्वपूर्ण वार्ता या रहस्य हम अपने तक ही सीमित रखे तो ब्रह्मदेव भी आया तो वह रहस्य नही जान पायेगा ।
सुभाषितकार ने यहाँ विश्वास और कम बोलना दोनो की ओर इशारा किया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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