||ॐ||
" सुभाषित रसास्वाद "(२७)
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" सामान्यनीतिः"।
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श्लोक---
" ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमारव्याति पृच्छति ।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम् "।। ( पञ्चतन्त्र)
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प्रीती की छह लक्षणे बतायी गयी है । जिसकी जिसके साथ प्रीती होती है , वह देता है लेता भी है , अपने मित्र के मन का गुपित भी पूछता है और अपने मन का गुपित भी बताता है । मित्र का खाता भी है और उसे खिलाता भी है । जब यह छह वैशिष्ट्य दिखेगी वहाँ पर प्रीती जरूर समझनी चाहिए ।
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गूढार्थ---
प्रस्तुत सुभाषित पञ्चतन्त्र में से उद्धृत है । मित्रलक्षण बताते हुए यह श्लोक आया है । प्रगाढ़ मैत्री कहाँ पर होगी तो जहाँ पर किसी भी बात में परदा नही होगा ।
वैसे आजकल के युग में भी यह सुभाषित लागू होता है । सुख तो हम सबके साथ बांटते है किन्तु दुःख के लिए हमे हमारा खास मित्र ही लगता है। दुःख हम हर किसीके साथ नही बांट सकते ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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" सुभाषित रसास्वाद "(२७)
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" सामान्यनीतिः"।
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श्लोक---
" ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमारव्याति पृच्छति ।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम् "।। ( पञ्चतन्त्र)
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प्रीती की छह लक्षणे बतायी गयी है । जिसकी जिसके साथ प्रीती होती है , वह देता है लेता भी है , अपने मित्र के मन का गुपित भी पूछता है और अपने मन का गुपित भी बताता है । मित्र का खाता भी है और उसे खिलाता भी है । जब यह छह वैशिष्ट्य दिखेगी वहाँ पर प्रीती जरूर समझनी चाहिए ।
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गूढार्थ---
प्रस्तुत सुभाषित पञ्चतन्त्र में से उद्धृत है । मित्रलक्षण बताते हुए यह श्लोक आया है । प्रगाढ़ मैत्री कहाँ पर होगी तो जहाँ पर किसी भी बात में परदा नही होगा ।
वैसे आजकल के युग में भी यह सुभाषित लागू होता है । सुख तो हम सबके साथ बांटते है किन्तु दुःख के लिए हमे हमारा खास मित्र ही लगता है। दुःख हम हर किसीके साथ नही बांट सकते ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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