Friday, November 15, 2019

Pandita prazamsa - Sanskrit sloka

||ॐ||
"सुभाषित  रसास्वाद"(४)
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 "पंडितप्रशंसा"
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श्लोक-----
"यत्र   विद्वज्जनो  नास्ति  श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि।
निरस्तपादपे  देशे  एरण्डोऽपि  द्रुमायते"।।  
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अर्थ---जहाँ   कोई  विद्वान  नही  ऐसे  प्रदेश  में  मंदबुद्धी  और  अल्पज्ञ  व्यक्ति  को  भी  प्रतिष्ठा  और  प्रशंसा   प्राप्त  होती  है ।  जैसे  जिस प्रदेश में पेड  नही  होते  वहाँ  पर  एरण्ड  को  भी  वृक्ष  का  सन्मान   प्राप्त  होता  है।
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गूढार्थ---" जहाँ   पर  कोई  ज्ञानी  नही  होता  वहाँ  पर  अल्पज्ञ  को  भी  विद्वान  का  महत्व  प्राप्त  होता  है"।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र 
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