Monday, June 24, 2019

Kavya darshan

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     " *संस्कृत-गङ्गा* " ( ८६ )
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" *काव्यशास्त्र* "(३)
" *काव्यप्रयोजन* "
शब्द की अभिधा शक्ति के कारण उसके मुख्य अर्थ (वाच्यार्थ) का बोध होता है। वाच्यार्थ के तीन प्रकार होते है:--(१) रूढ अर्थ:- जो लौकिक संकेत के कारण शब्द में रहता है।(२) यौगिक अर्थ:- शब्द के प्रकृति प्रत्यय आदि अवयवों का पृथक बोध होने से व्युत्पत्तिद्वारा इस अर्थ का बोध होता है। जैसे--दिनकर,सुधांशु आदि शब्दों से सूर्य तथा चंद्र आदि अर्थों का बोध होता है।
(३)योगरूढ अर्थ:-- वारिज, जलज आदि शब्दों का यौगिक अर्थ है पानी में उत्पन्न होनेवाला शंख, शुक्ति, मत्स्य, शैवल आदि कोई भी पदार्थ । परंतु उनका योगरूढ अर्थ होता है कमल। इस प्रकार के त्रिविध वाच्यार्थों के कारण उनके वाचक शब्द के रूढ यौगिक तथा योगारूढ नामक तीन प्रकार माने गये है।
क्रमशः आगे......
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र
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      " *संस्कृत-गङ्गा* " ( ८८ )
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" *काव्यशास्त्र* "(५)
" *काव्यप्रयोजन* "
आज व्यंजना शक्ति के बारे में।
साहित्यशास्त्र में " *गतोऽस्तमर्कः*" यह वाक्य व्यंग्यार्थ के उदाहरणार्थ दिया गया है। " *सूर्य का अस्त हुआ*" इस वाच्यार्थ के द्वारा ब्राह्मण, किसान, अभिसारिका, चोर,बाल- बालिकाएं आदि अनेक प्रकार के श्रोता-वक्ताओं में उनकी वृत्ति या अवस्था के अनुसार प्रस्तुत वाक्य से भिन्न भिन्न  प्रकार के अर्थों की प्रतीति होती है। ये भिन्न भिन्न  अर्थ अभिधामूलक वाच्यार्थ से सर्वथा भिन्न होते है। ऐसे अर्थ को शब्द का व्यंग्यार्थ कहते है। इस व्यंग्यार्थ की प्रतीति शब्द के जिस शक्ति के कारण होती है उसे "व्यंजना" कहते है। प्रकरणगत तात्पर्यार्थ की प्रतीति तात्पर्य नामक चौथी वृत्ति से मानी  गयी है।
क्रमशः आगे.......
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र
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