Wednesday, May 29, 2019

Sri sankaracharya suprabhatam - Composition of HH.Pujayasri.Viswesvarananda Bharati of Shivaganga mutt

श्री शृंगेरि शिवगंगा शारदापीठाधिपति (1977-82) श्री विश्वेश्वरानंद भारति विरचित
श्री शंकराचार्य सुप्रभातम्
अज्ञानध्वांत सूर्याभां शारदा रूपिणीं शुभाम् 
ज्ञानप्रदां स्मराम्यंबां सर्वशक्तिमयीं सदा ॥ १ ॥
आचार्यवर्य करुणामय मोक्षदायिन्
अज्ञानजाड्य तिमिरापह दिव्यगात्र
प्रारब्धकर्मसुविमोचन ज्ञानराशे 
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ २ ॥
सर्वार्थसाधक, सदाशिव शांतमूर्ते
तेजोमयार्तिहर तात्विक मार्गदर्शिन्
पीयूषवर्षि परिपूर्णमुखेंदुबिंब
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ३ ॥
दारिद्र्यनाशन दयामय दीनबंधो
धर्मस्वरूप धृतषण्मत धर्म संस्थ
श्री भारती विजय लब्धयशो विशाल
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ४ ॥
श्री व्यासनिर्मित महोज्वल सूत्रभाष्य
निर्माण संगति धुरीण लसत्प्रभाव
ज्ञानप्रदान चणपादपयोजयुग्म
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ५ ॥
आज्ञावशंवद रमा करुणाकटाक्ष
भूमाप्रदान गुणसिद्ध गुरुस्वभाव
आर्यांबिकातनय बंधविमोचकस्य 
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ६ ॥
जन्मादि दुःख विनिवारण भक्तपोष
देहात्मधी भ्रमनिवारक ज्योतिरूप
श्री कालटी जनन शिष्य हृदब्जवास
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ७ ॥
ब्रह्मण्यदेव तवशांत मुखारविंद
सन्दर्शनेन कलुषाऽनभिभूत चित्ताः
सच्चित्तयोगमुपयांतिनराः क्षणेन
त्वद्दर्शनं सुकृतिनां खलु जायतेहि ॥ ८ ॥
धी लक्ष्ययुक्त बुधसेविन भावगम्य
वैराग्य भाग्य वरदाभय पाणिपद्म
सर्वज्ञ पीठसमधिष्ठत पादपद्म
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ९ ॥
श्री दक्षिणाभिमुखदेव महेश शंभो
विश्वार्तिभंजन विवेकि जनाळिवंद्य
ब्रह्मादि देवगणमानित मंत्रशक्ते
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १० ॥
ध्यायामि नित्यमनवद्य पदद्वयं ते 
कैवल्यदायि कमलामल कांतिकांतम् 
साक्षाच्छिवात्मकममेय महानुभाव
श्री सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ ११ ॥
भो, पूज्यपाद वृषभाचलवास विश्व
स्यात्म स्वरूप सदसद्गुणसारगम्य
अद्वैत राज्य परिपालक संयमिंद्र
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १२ ॥
सत्पंडितेड्य धृतदंड कमंडलु श्री 
हस्ताब्जदिव्य पदपंकज पाहि पाहि
भावं प्रभोध्य भवबंध विमोचकस्य
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १३ ॥
बालं विशुद्ध परमात्मरतिं सुधीरं 
दृष्ट्वा करामलक सार्थक नामधेयं 
कृत्वा स्वशिष्यमधिकं मुदितोसितस्य
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १४ ॥
सद्ब्रह्मचर्य गुरुसन्निधिवासकाले
भिक्षाटनाय गृहिणोऽधिक भक्तिभाजः 
रिक्तस्य गेहमकरोः कमलानिवासं 
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १५ ॥
तद्वेश्मयत्स्व यमुपेयुषि दीनबंधौ
त्वय्यादरेण गृहिणीकिल सा द्विजस्य
धात्रीफलं किमपि दत्तवतीहि तुभ्यं 
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १६ ॥
श्री पद्मपाद मुनिसेवित पादपद्म
सत्तोटकाभिध सुशिष्य गुणाळि तृप्त
सत्सेवकोत्तम करामलकादियुक्त
बुद्धि प्रधान बुधवर्य सुरेश्वराप्त ॥ १७ ॥
व्याघ्राजिनस्थ गुरुपुंगव शर्मदायिन्
त्वत्सेवया विदित शांतिरसाति शुद्धान् 
भक्तिप्रभाव चतुरांस्तव शिष्य मुख्यान् 
ध्यायामि चेतसि ममात्मविकाससिद्ध्यै ॥ १८ ॥
शंकाकळंक परिहारक किंकराणां
प्राग्जोतिरादिसुविसारि विभाविशेष
प्राभाकरादि घनपंडित सेवितांघ्रे
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ १९ ॥
संसार पंकपरिशोषण तीक्षरश्मे 
तापत्रयाकुलजनौघ सुखप्रदातः
साम्राज्यपालन सुधन्व नृपाल शास्तः
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ २० ॥
सर्वापदुद्धरण सांद्र दयारसाब्धे
सान्निध्यवर्ति हित शिष्य समाहितात्मन् 
भाष्यार्थ बोधन विधान कलाप्रवीण
ते सार्वभौम गुरुशंकर सुप्रभातम् ॥ २१ ॥
तुंगांबु शीकर कणैश्शिशिरे नृनारी
संदोह रंजित झषप्रकर प्रमोदे
हंसावळी शुकपिकादि विकूजितैश्च
रम्ये पवित्र भुविशृंगगितौ विशालम् ॥ २२ ॥
निर्माय सुंदर शिलाकृत शिल्पजालैः 
प्रासादमद्भुत विमान विशेषमग्र्यम्
संपूज्य दिव्यमणि भूषण भूषितांगीं 
श्री शारदां प्रमुदितामकरोस्त्व मंभाम् ॥ २३ ॥
तत्राद्यपीठ गुरुयोग्य पदेनिवेश्य
श्रीमत्सुरेश्वर यतीश्वर मात्मतुल्यम् 
भाष्यादि वार्तिक मुखानपि कारयित्वा
तुंगाप्रशस्त पुलिने खलु तेन भासि ॥ २४ ॥
ध्यायामि संशय विदारण धी विशालं 
तं सद्गुरुं शिवगुरोः प्रिय पुत्ररत्नम्
धीमंतमांतर गुहानिलयं नितांतं
श्री शंकरार्य गुरुवर्यमहं हि सिद्ध्यै ॥ २५ ॥
ये मानवास्सतत माश्रमिण स्समस्त 
मूर्ति प्रकाशन गुरुं परमार्थ बुद्ध्या
ध्यायंतिते तत महोद्धत दुःखवार्धि
संतारणेननितरां मुदिता भवंति ॥ २६ ॥
रागादिरोग परिशोषण भेषजं तं 
योगादि भूषण विवर्धित देहकांतिम् 
शिष्याळि सेवित मनोज्ञ पदांबुजातं 
श्री वेद वारिनिधि पूर्ण शरत्सुधांशुम् ॥ २७ ॥
सेवेद्य संसृति दवानल तापशांत्यै
श्री शंकरार्य इति पूजितनामधेयम् 
अद्वैत तत्त्व महिमोन्नति मूर्तिमंतं 
विश्वैक शांति सुख दान विधान शीलम् ॥ २८ ॥
चंद्रार्कवायु सलिलाग्नि वियत्सुधीज्या
मूर्त्या समस्त जगतां परिपालकं तम् 
फाले विराजदति दिव्य महा प्रकारशम् 
ध्यायामि श्री शिवगुरुं ममबुद्धिकोशे ॥ २९ ॥
यो मंदधीर्गिरिरिति प्रथितोति भक्त
श्शिष्यस्त्वदीय करुणार्द्रदृशैव सद्यः 
स्तुत्याकुशाग्रधिषणो भुवितोटकाख्य
वृत्तैस्सतोटक इति प्रथितो बभूव ॥ ३० ॥
भो शंकरार्य, मुनिवर्य, शृतिप्रशस्त
दीव्यद्गुणाढ्य विदिताखिल शास्त्र तत्व
अज्ञान रात्रि मिहिराखिल लोकबंधो
ब्रह्माद्वयैक रसपूर्ण निगूढ तत्व ॥ ३१ ॥
सर्वांग तापक भवाभिद दीर्घरोग
संहारकामृत महौषधि रूपनित्यम् 
सेवां त्वदीय पदपंकज भक्तिरूपां
कृत्वाथवंदन शतानि समर्पयामि ॥ ३२ ॥
श्री शंकराखिलगुरो तव सुप्रभात
मित्थं सुबोधवचसा रचितं मया यत् 
त्वत्प्रेरणैव तवमे न गुणोपि दोषः
त्वत्कारितं कृतवतस्त्वदनुग्रहेण ॥ ३३ ॥
भक्त्याहि येभुवि जगद्गुरु सार्वभौम
श्री सुप्रभात विनुतिं मनुजाः पठंति
तेयांति शान्ति सुखलक्ष्य विदोखिलार्थान् 
मुक्तिंच शंकर गुरोस्सदनुग्रहेण ॥ ३४ ॥
इति श्री शंकराचार्य सुप्रभातस्य कीर्तनात् 
मोहभ्रांति विमुक्तास्स्युस्स्वयमेव न संशयः ॥ ३५ ॥
ध्यायामो भगवत्पाद शंकरं करुणालयम्
सुख शांति मनोभीष्टसिद्धिदं शुद्धं बुद्धिदम् ॥ ३६ ॥ 

https://drive.google.com/file/d/0B3VQPnFaIiFUdnA2emlUZG1oTUk/view?usp=sharing 👆🏻 श्रीशङ्करभगवत्पादसुप्रभातम्। अस्य बहुषु स्थलेषु स्थाप्य प्रकटीकुर्वन्तु इति प्रार्थये।

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