पृथ्वी उवाच----
नाहं दुनोमि कवयो  महतां प्रभारै:
                      नाहं दुनोम्यखिलमानवपादघातै:।
नाहं दुनोमि खलपीडनकैश्च पृथ्वी
                      निर्वाचने मधुरसंलपनैर्दुनोमि।।
                                  **अरविन्द:।
हे कवियों! 
              मैं सज्जनों के महान् भार से दुखी नहीं हूं और ना ही सभी लोगों के चरणप्रहार से दुखी हूं। मैं दुर्जनों की पीड़ा से भी दुखी नहीं हूं, लेकिन मैं पृथ्वी चुनाव में मीठे वादे किये जा रहे हैं, उनसे दुखी हूं।
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अरविन्दं  विलोक्यापि  व्यथसे हे सखे वृथा।
पराजित्य  सुमं फुल्लं  सौरभं  सारयिष्यति।। 1
रुष्टोऽस्मि नैव न च तुष्ट इवास्मि सूर्य: 
          पत्नी कदपि कुपिता न च मामकीना।
निर्वाचने प्रवदतां मुखतापराशि:
          प्रातर्दिवा भुवि कवे भवति प्रचण्ड:।। 2
                    *अरविन्द:
 
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