Friday, May 31, 2019

Mimamsa darshan

|| *ॐ*||
     " *संस्कृत-गङ्गा* " ( ७३ )
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" *मीमांसादर्शन*"(४)
" *मीमांसादर्शन के कुछ मौलिक सिद्धान्त* "
(१)वेद नित्य स्वयंभू एवं अपौरुषेय और अमोघ है।
(२) शब्द  और अर्थ का संबंध नित्य है, वह किसी व्यक्ति के द्वारा उत्पन्न नही है।
(३) आत्माएं अनेक नित्य एवं शरीर से भिन्न है। वे ज्ञान एवं मन से भी भिन्न है। आत्मा का निवास शरीर में होता है।
(४) यज्ञ में हवि प्रधान है और देवता गौण।
(५)फल की प्राप्ति यज्ञ से ही होती है, ईश्वर या देवताओं से नही।
(६)सीमित बुद्धि वाले लोग वेदवचनों को भली भांति न जानने के कारण भ्रामक बाते करते है।
(७)अखिल विश्व की न तो वास्तविक सृष्टि होती है और न ही विनाश।
(८) यज्ञसंपादन संबंधी कर्म एवं फल के बीच दोनों को जोडने वाली "अपूर्व" नामक शक्ति होती है। यज्ञ का प्रत्येक कृत्य एक "अपूर्व" की उत्पत्ति करता है,जो संपूर्ण कृत्य के अपूर्व का छोटा रूप होता है।
(९) प्रत्येक अनुभव सप्रमाण होता है,अतः वह भ्रामक या मिथ्या नही कहा जा सकता।
(१०) महाभारत एवं पुराण मनुष्यकृत है ,अतः उनकी स्वर्गविषयक धारणा अविचरणीय है। स्वर्गसंबंधी वैदिक निरूपण केवल अर्थवाद (प्रशंसापर वचन ) है।
क्रमशः आगे......
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र
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