Monday, January 7, 2019

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
     " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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     " *धर्मनीति* " ( २९३ )
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    *श्लोक*---
    " धर्मः  एव  हतः हन्ति ,  धर्मो रक्षति  रक्षितः।
      तस्माद्  धर्मः न हन्त्यत्यः मा नः धर्मः हतः बधीतः।। "
      ( महाभारत ३•११४•१३१ )
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*अर्थ*----
    हमने  अगर  धर्म  का  नाश  किया  तो  धर्म  हमारा  नाश  करता  है ।
   हमने  धर्म  का  रक्षण  किया  तो  धर्म  हमारा  रक्षण  करता  है ।
     इसलिए  धर्म  का  नाश  नही  करना  चाहिये  तो  ही  धर्म  हमारा  नाश  नही  करेगा ।
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   *गूढ़ार्थ*----
    कितने  सुन्दर  तरीके से  यहाँ  पर  धर्म  की  व्याख्या  बतायी  गयी  है ।
मानवजीवन  में  धर्म  का  स्थान  सर्वोपरि  है ।  आजकल  स्वार्थ  के  लिये  धर्म  बदलने  वाले  लोग  काफ़ी  मिलते  है ।  लोग  धर्म  के  लिये  लड़ते  है  पर  धर्म की  व्याख्या  काफ़ी  विस्तृत  बतायी  गयी है ।
  देवधर्म , मानवधर्म, शरीरधर्म, पती- पत्नी  धर्म , आपद्धर्म,  पुत्रधर्म, से  लेकर  तो  सर्वधर्म तक ।  
धर्म  मतलब  कर्तव्य, कायदा , और  श्रेष्ठ गोष्टी का  परिपालन ।
  धारयति  इति  धर्म ।
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / नागपुर  महाराष्ट्र 
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