|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *धर्मनीति* " ( २९३ )
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*श्लोक*---
" धर्मः एव हतः हन्ति , धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद् धर्मः न हन्त्यत्यः मा नः धर्मः हतः बधीतः।। "
( महाभारत ३•११४•१३१ )
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*अर्थ*----
हमने अगर धर्म का नाश किया तो धर्म हमारा नाश करता है ।
हमने धर्म का रक्षण किया तो धर्म हमारा रक्षण करता है ।
इसलिए धर्म का नाश नही करना चाहिये तो ही धर्म हमारा नाश नही करेगा ।
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*गूढ़ार्थ*----
कितने सुन्दर तरीके से यहाँ पर धर्म की व्याख्या बतायी गयी है ।
मानवजीवन में धर्म का स्थान सर्वोपरि है । आजकल स्वार्थ के लिये धर्म बदलने वाले लोग काफ़ी मिलते है । लोग धर्म के लिये लड़ते है पर धर्म की व्याख्या काफ़ी विस्तृत बतायी गयी है ।
देवधर्म , मानवधर्म, शरीरधर्म, पती- पत्नी धर्म , आपद्धर्म, पुत्रधर्म, से लेकर तो सर्वधर्म तक ।
धर्म मतलब कर्तव्य, कायदा , और श्रेष्ठ गोष्टी का परिपालन ।
धारयति इति धर्म ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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