Wednesday, January 2, 2019

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *कूटश्लोकः* " ( २८७ ) 
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    *श्लोक*----
    " राक्षसेभ्यः सुतां ह्रत्वा  जनकस्य  पुरीं  गतः ।
     अत्र कर्तृपदं  गुप्तं  यो  जानाति  स  पण्डितः ।। " 
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    *अर्थ*----
     राक्षसों  से   पुत्री का  हरण करके वह जनक की नगरी में चला गया ।  यहाँ  पर  कर्ता  गुप्त  है  और  जो  जानेगा  वह  पण्डित  कहालेयेगा। 
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    *गूढ़ार्थ*---
    राक्षसेभ्यः  इसका  सन्धिविच्छेद  करने  के  बाद  = राक्षसानां  इभ्यः= राक्षसों  का  राजा  ऐसी  होती  है । ( इभ्यः= राजा ) मतलब  रावण  ऐसा  उत्तर  मिलता  है और जनकस्य सुतां  ऐसा  अन्वय  करने  के  बाद  ,
" जनक  की  पुत्री  को  भगाकर  राक्षसश्रेष्ठ ( रावण ) अपनी  नगरी को ( लङ्का ) चला  गया ।
और  कूट  श्लोक  समझ  में  आता  है ।
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डाॅ . वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  नागपुर  महाराष्ट्र 
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