|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
-----------------------------------------------------------------------------
" *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २६८)
----------------------------------------------------------------------------
*श्लोक*---
" शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक् छत्रेण सूर्यातपो ।
नागेन्द्रो निशितातांकुशेन समदो , दण्डेन गौगर्दभौ ।
व्याधिर्भेषज संग्रहैः विविधैः मंत्रप्रयोगैर्विषषम् ।
सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं , मूर्खस्य नास्त्यौषधम् "।।
-------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*---
अग्नि पानी से शांत होता है , छाते के द्वारा धुप से संरक्षण होता है ।
हाथी को अंकुश के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । बैल और गधे जैसे प्राणियों को दण्डे से नियंत्रण में रखा जा सकता है ।
किसी रोग पर औषधी द्वारा विजय पाया जाता है । विषबाधा को मंत्रप्रयोग से गुण प्राप्त होता है । इस तरह से शास्त्र में सब पर उपाय है किन्तु मूर्खों के लिए कोई औषधी नही है ।
---------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*----
किस तकलीफ़ पे क्या उपाय है और किसको किस के द्वारा अंकित किया जा सकता है यह हमे सुभाषितकार ने हमे बताया है ।
किन्तु सुभाषितकार का दुःख यह है कि कोई या किसी भी शास्त्र में मूर्खों के लिये कोई उपाय नही बताया गया है । मूर्ख की मूर्खता की कोई तकलीफ़ हमे ना पोहचे इसलिए दो कदम पीछे जाना ही उचित रहता है । श्री. रामदास स्वामी ने एक पूरा समास ही मूर्खों पर लिखा है । यह अनुभव हमारे दैनंदिन जीवन में हम कई बार ले चुके होते है।
--------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
------------------------
डाॅ.वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
----------------------------------
🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓
No comments:
Post a Comment